सखि, इंटरनेट किस तरह आदमी की जिंदगी बन गया है , यह मुझे कल पता चला । हुआ यूं कि कल दुर्गाष्टमी थी । हम लोग दुर्गाष्टमी की पूजा करते हैं । तो कल भी पूजा करनी थी ।
सुबह जैसे है मैं जगा, श्रीमती जी ने हुक्म सुना दिया । "आज दुर्गाष्टमी है और आपको तो पता ही है कि आपको क्या करना है" ?
ये हमारे लिए एक आदेश था । मतलब कि पूजा के लिये भोजन हमें ही बनाना है । बस यही खीर , पुए, हलवा, दही बड़ा । बाकी सामान जैसे पूरी, सब्जी वे बना लेंगी ।
अब इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं । शादी के बाद हम दोनों जब साथ साथ रह रहे थे और "हनीमून" जैसा अनुभव कर रहे थे तो हमने प्रेम के आवेग में श्रीमती जी से खीर पुए की फरमाइश कर दी । अब श्रीमती जी अंग्रेज मैम । एकदम गोरी चिट्टी , अंग्रेजी में एम. ए. और मैं ठहरा हिंदी भाषी और कॉमर्स से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने वाला औसत दर्जे का किसान -व्वसायी परिवार का साधारण सा आदमी । वो ठहरी रेलवे के बड़े अधिकारी की बेटी । आगरा शहर में पढ़ी लिखी और मैं ठेठ देहाती । पता नहीं उन्होंने मुझमें क्या देखा जो पहली नजर में ही पसंद कर लिया और इस तरह वे हमारी भार्या बन गई ।
हमने फरमाइश तो कर दी मगर उधर से कोई आवाज नहीं आई । हमें खटका हुआ तो हमने पूछा "आपको खीर अच्छी नही लगती है क्या " ?
उधर से आवाज आई " बहुत अच्छी लगती है, लेकिन"
"लेकिन क्या" ?
"जब बनी बनाई मिले तो अच्छी लगती है " ।
बात तो पते की थी । बनी बनाई तो हर चीज अच्छी लगती है । इसमें गलत क्या है ? इसका मतलब है कि खीर पुए बनाना नहीं आता । "है न " ?
"जी" । एक बार तो माथा घूम गया लेकिन बात संभालते हुए कहा "अरे , तो इसमें घबराने की क्या बात है ? हम हैं ना । सब सिखा देंगे । अब ठीक है" ?
"ठीक है । तो खीर पुए आप बना रहे हैं ना" ?
इस तरह हमने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली । सखि, तुम तो जानती ही हो कि हम खीर पुए कितने शानदार बनाते हैं । सो उस दिन हमने हमारी "पाक कला" का चमत्कार दिखा दिया । बस, समझो आफत को बुला लिया । उन्होंने खीर की बहुत तारीफ की । हम फूले नहीं समाए । अगली बार हमने कहा 'ल़ो आज सिखा देता हूं तुम्हें खीर बनाना" ।
"पागल हो गए हो क्या ? जब आप इतनी बढिया खीर बना लेते हैं तो मुझे क्या जरुरत है सीखने की" ?
"अब तो गले की हड्डी बन चुकी थी खीर । और इस तरह जब भी तीज त्यौहार आते हैं तो खीर, पुआ, हलवा, दही बड़ा बनाने की जिम्मेदारी हमारी । हां, कभी कभी पूरी भी तल देते हैं" ।
तो जुट गए प्रसादी बनाने में । हालांकि पिछले एक साल से बेटा बहू भी यहीं रह रहे हैं । कोरोना ने बहुत नुकसान किया है मगर कुछ फायदा भी किया है । बेटा बहू बैंगलोर में जॉब करते हैं मगर उन्हें एक साल का "वर्क फ्रॉम होम" मिल गया । तभी से साथ रह रहे हैं । नवंबर में प्यारा सा पोता हो गया और फरवरी में बेटी इति श्री की शादी । बहू को तो पोता "शिवांश" से ही फुर्सत नहीं । बीवी ने सीखी नहीं तो झक मारकर मुझे ही बनानी पड़ी । सारा सामान बना लिया । पूजा करने के बाद प्रसादी पाई । थोड़ा आराम कर लिया । अब कैला मैया के "जात" लगाने चलना है , इसकी तैयारी करने लगे ।
हमारे खानदान में "जाये और ब्याहे" की जात "बीजासनी माता" के यहां पर लगती है । जाये मतलब "पुत्र" पैदा होना और "ब्याहे मतलब पुत्र की शादी होना । पुत्र की शादी 28.1. 2019 को हो चुकी थी और उसकी जात भी लग चुकी थी । अब तो पोता शिवांश की बारी थी ।
क्रमशः
हरि शंकर गोयल "हरि"
10.4.22
Rohan Nanda
15-Apr-2022 01:02 AM
👍👍👍
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Anam ansari
11-Apr-2022 07:25 PM
Good
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Apr-2022 11:07 PM
💐💐🙏🙏
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Gunjan Kamal
11-Apr-2022 03:15 PM
बहुत खूब
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Apr-2022 11:07 PM
💐💐🙏🙏
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